उड़ने बाला था एक परिंदा
मगर वो उड़ न सका
देखे थे उसने भी कई सपने
उन सपनों को बुना सका
उम्र निकलती जा रही
सपनो की फिकर मे
चलता तो है हर मंजिल की तरफ वो
मगर रास्ते में कोई हम साफर
मिल नहीं सका
कभी कहता था ये करूँगा वो करूँगा
नजाने अब वो क्यों यह कर ना सका
उड़ने बाला था एक परिंदा
मगर वो उड़ ना सका…..
– Soumya samprita dad