आंगन में चिड़िया आती है साहब..!
बैठती है,
चहकती है,
फुदकती है,
फड़फड़ाती है,
चौकन्नी होकर मटकती रहती है।
थोड़ी सी हलचल हो ; वह उड़ जाती है।
हम दाना फेंके, वो उड़ जाती है।
कितने ताज्जुब की बात है ना..!
हमारे दाने उनको कंकड़ लगते हैं,
मैं दहल जाता हूं,
टूट जाता हूं,
बिलख जाता हूं साहब..!
पंछियों को भी हम पे भरोसा न रहा!
©अनिल मालवीय मन्नत*